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रबीन्द्रनाथ टैगोर

कवि

रबीन्द्रनाथ टैगोर (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) - विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांङ्ला' गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।

कैलाश पर्वत का रहस्य

कैलाश पर्वत, कैलाश रेंज की सबसे ऊंची चोटी है। जो तिब्बत, नेपाल और भारत में फैली हुई है। इसके अलावा, यह चीन के तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र में ट्रांस-हिमालय का एक हिस्सा है। यह पवित्र पर्वत एशिया की चार सबसे लंबी नदियों सिंधु नदी, सतलुज, ब्रह्मपुत्र और करनाली नदी के उद्गम स्थल के आसपास स्थित है। इसके आस पास का क्षेत्र पहाड़ों से घिरा हुआ जो कुदरत द्वारा बनाया गया एक अद्भुत चित्र की लगता है।

कैलाश पर्वत का नाम सुनते ही सबसे पहले महादेव की छवि दिखाई देती है। 6656 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, महादेव का निवास स्थान कैलाश पर्वत दुनिया का सबसे पवित्र तथा रहस्यमय पर्वत है। आप सोचेंगे रहस्य कैसे? तो इसका जवाब हम आपको थोड़ी देर में देंगे। पहले कैलाश पर्वत के बारे में कुछ जान लेते है।

कैलाश पर्वत के साथ कई अलग अलग धार्मिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई है। बौद्ध, धर्म, हिंदू धर्म , जैन धर्म और बॉन के लोगों के लिए एक धार्मिक स्थान है, उनकी अलग-अलग मान्यताएं इसे जुड़ी है। हिंदुओं का मानना ​​​​है कि भगवान शिव, माता पार्वती के साथ इस पर निवास करते हैं। जबकि तिब्बती बौद्ध मानते हैं कि कैलाश पर्वत पर डेमचोग और उनकी पत्नी, दोर्जे फागमो का वास है और जैन लोग कैलाश को वह स्थान मानते हैं जहां उनके पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने निर्वाण (मुक्ति) प्राप्त किया था। लेकिन बॉन (तिब्बत के पूर्व-बौद्ध, शैमनवादी धर्म बॉन के अनुयायी) का मानना ​​​​है कि यह पवित्र पर्वत, एक आकाश देवी सिपाइमेन का आसन है, साथ ही दुनिया का केंद्र और सभी देवताओं का घर है। कैलाश में कौन रहता है, इस बारे में सभी का एक अलग दृष्टिकोण है यही कारण है जो इस पवित्र पर्वत को रहस्यमय बनाता है।

धार्मिक भावनाओं के अलावा कैलाश पर्वत से अनेकों अनसुलझे रहस्य भी जुड़े हुए है। जिनको आज तक कोई सुलझा नहीं पाया है। इस पर्वत के आस पास ऐसी घटनाएँ तथा गतिविधियां देखी गयी है जिन्हे एक आम इंसान द्वारा समझना असंभव है। पुराणों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि इस कैलाश पर्वत पर भगवान शिव का निवास रहा है। अब मन में यह प्रश्न उठता है़ कि भगवान शिव ने अपने रहने के लिए इस कैलाश पर्वत को ही क्यों चुना? इस बात के पीछे क्या रहस्य है? इस संबंध में संत-महात्माओं का कहना है़ कि धरती के केंद्र में स्थित होने के कारण ही संभवतः भगवान शिव ने कैलाश पर्वत को ही अपना निवास स्थान बनाया। ताकि वह इस जगह से पूरी सृष्टि को संचालित कर सकें।

कैलाश पर्वत पर किसी के भी न चढ़ पाने का रहस्य
ऐसे में जहाँ भगवान हैं वहाँ मानव का पहुँच पाना कठिन है़। इसीलिए कैलाश पर्वत वह परम देवत्व का स्थान है, जहाँ किसी व्यक्ति का पहुंच पाना संभव नहीं है़। ऐसा भी कहा जाता है़ कि इस पर्वत की अदृश्य शक्तियाँ स्वयं नहीं चाहती कि कोई मानव इस पर्वत पर चढ़ सके। यह परम आश्चर्य ही है कि कैलाश पर्वत से ऊँचे माउंट एवरेस्ट पर तो लोग पहुंच चुके हैं।

लेकिन इस पर्वत की रहस्यमय शक्ति के द्वारा रोके जाने के कारण कोई इस कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाता। अनेक लोगों ने इस कैलाश पर्वत पर चढ़ने का प्रयास किया। लेकिन असफल रहे। इस पर्वत के रहस्य को हजारों किलोमीटर दूर से ही लोगों ने महसूस किया। उन्हें आभास हुआ कि इस कैलाश पर्वत पर कोई अलौकिक रोशनी है जो दुनिया में कहीं और नहीं है।

कैलाश पर्वत की पवित्र ध्वनियों का रहस्य
कहते हैं कि कैलाश पर्वत के आसपास ॐ की ध्वनि गूंजती रहती है। कुछ लोगों को इस कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के डमरू की आवाज भी सुनाई दी है। लोगों को इस पर्वत के आसपास हजारों फुट ऊंची विशालकाय जटाधारी आकृति का आभास होता है। ऐसा लगता है कि भगवान शिव तपस्या में लीन हैं। कुछ व्यक्तियों ने इस पर्वत पर जब चढ़ाई शुरू की तो उनके पैर धरती में जम गये।

ऐसा लगता था की कोई शक्ति उन्हें रोकने का प्रयास कर रही है। तिब्बत में स्थित इस कैलाश पर्वत पर जब वहां के कुछ धर्मगुरुओं द्वारा पहुंचने की कोशिश की गई तो अचानक सैकड़ों शंख के स्वर उनके कानों में गूंजने लगे। जब उन शंख की ध्वनियों को सुनना असहनीय हो गया तब वे धर्मगुरु अपनी यात्रा को बीच में ही रोक कर वापस आ गये।

पृथ्वी का केंद्र होने का रहस्य
भौगोलिक स्थिति के अनुसार कैलाश पर्वत जिस स्थान पर स्थित है वह हमारी धरती का केंद्र बिंदु है। यही वह स्थान है जहां पृथ्वी को संचालित करने वाली तमाम शक्तियां प्रवाहित होती हैं। यही वह स्थान है जहां से विश्व में बहने वाली तमाम नदियां जैसी ब्रह्मपुत्र, सिंधु और सतलुज आदि प्रकट होती हैं और पूरी धरती को अपने निर्मल जल से पवित्र कर देती हैं।

महाभारत कालीन असीरियन सभ्यता का रहस्य
यहां पश्चिम में मानसरोवर और दक्षिण में राक्षस ताल झील है। ऐसा कहा जाता है कि जहाँ मानसरोवर झील भगवान शंकर का आशीर्वाद है जिसके स्पर्श मात्र से रोग, शोक और भय से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं राक्षस ताल झील का जल मानव के लिए विष तुल्य है ।

कैलाश पर्वत की बनावट का रहस्य
यदि आप कैलाश पर्वत के दर्शन करें तो आप पाएंगे कि यह पर्वत अन्य पर्वतों की तुलना में बिल्कुल अलग और दिव्य है। कैलाश पर्वत के पिरामिडनुमा आकार को देखकर ऐसा लगता है जैसे की किसी अलौकिक शक्ति ने अपने हाथों से इस पर्वत को रचकर यहाँ रख दिया हो। क्योंकि कैलाश पर्वत जैसे दिव्य दर्शन कहीं अन्यत्र नहीं मिलते ।

संत-महात्माओं का कथन है कि इस कैलाश पर्वत की रचना स्वयं पार्वती जी ने अपनी तपस्या से की थी। इसीलिए इस स्थान पर आकर एक नए जीवन की अनुभूति होती है। क्योंकि इस स्थान पर मनुष्य की सांसे यहाँ की दिव्य शक्ति से संचालित होने लगती हैं।

कैलाश पर्वत पर न पहुंच पाने का रहस्य
भौगोलिक जानकारों के अनुसार इस कैलाश पर्वत का स्थान बदलता रहता है। जिसके कारण इस कैलाश पर्वत पर पहुंच पाना एक असंभव कार्य है। कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि यह कैलाश पर्वत अपने स्थान पर घूमता रहता है। जिसके कारण यहाँ आने वाले को दिशा भ्रम हो जाता है और वह इस पर्वत पर चढ़ाई करते समय यह भूल जाता है कि वह सही रास्ते पर जा रहे है अथवा गलत।

वो श्राप जिससे एक क्रूर जज तड़प-तड़प कर मरा
इस कैलाश पर्वत पर पहुँचने के लिए चढ़ाई करने वाले लोगों का यह भी कहना है कि यह कैलाश पर्वत अपने स्थान पर कभी आगे, तो कभी पीछे, तो कभी दाएं तो कभी बाएं खिसकता हुआ नजर आता है। जिस तिलस्म को देखकर पर्वतारोही वहां तक पहुंचने का अपना साहस खो देते हैं। कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि कैलाश पर्वत पर स्थित अदृश्य शक्ति यहाँ के रहस्य को रहस्य ही बनाए रखना चाहती है। इसीलिए कैलाश पर्वत पर विजय प्राप्त करना आसमान से तारे तोड़ने के समान है।

कैलाश पर्वत के आस-पास उम्र के तेजी से बढ़ने का रहस्य
एक अंग्रेज जिसका नाम लॉरेंस डिसूजा था। उसने एक बार मन में ठाना कि मैं इस अजेय कैलाश पर्वत पर चढ़ कर के ही रहूंगा। इसके बाद उसने कैलाश पर्वत पर जाने के लिए अपनी चढ़ाई शुरू कर दी। लेकिन वह भी आधे रास्ते से ही लौट आया। लेकिन जब उसने अपनी यात्रा के अनुभवों को लोगों से साझा किया तो लोग उसकी बातों को सुनकर आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने बताया कि जब मैंने चढ़ाई आरंभ की तो शुरू में सब कुछ सामान्य था।

लेकिन जैसे -जैसे मैं आगे बढ़ता जा रहा था वैसे वैसे ही कुछ ऐसी अचंभित कर देने वाली घटनाएं मेरे साथ होने लगीं थीं। जिसे देखकर मैं बहुत आश्चर्यचकित था। उस अंग्रेज व्यक्ति ने बताया कि जब मैं इस यात्रा पर निकला था तो उस समय मेरी उम्र केवल 30 वर्ष की थी। इसीलिए मेरे सर के बाल पूरी तरह काले थे। लेकिन जैसे-जैसे मैं कैलाश पर्वत की चढ़ाई में आगे बढ़ता जा रहा था वैसे वैसे मेरे बाल सफेद होते जा रहे थे।

मेरे चेहरे और हाथों पर झुर्रियां नजर आने लगी थीं। मैंने अपनी शारीरिक क्षमता में भी इस बात को महसूस किया कि अब मैं जवान से बूढ़ा हो चला था। उस अंग्रेज ने बताया कि जब मैंने अचानक अपनी शारीरिक स्थिति में यह परिवर्तन देखा तो बेहद घबरा गया और कैलाश पर्वत पर चढ़ने का अपना इरादा त्याग दिया। वैज्ञानिक इस स्थान की जलवायु को पर्वतारोहियों के लिए प्रतिकूल मानते हैं। इसीलिए वह कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाते ।

चीनी पर्वत ल्हा चोओ और होंग चो का रहस्य
कैलाश पर्वत दो अन्य चीनी पर्वत ल्हा चोओ और होंग चो के बीच स्थित है। यह दोनों पर्वत भी कैलाश पर्वत के रहस्यमय वातावरण से प्रभावित हैं। क्योंकि इन दोनों पर्वतों से भी तरह-तरह की आवाजें सुनाई देती हैं। उन आवाजों को सुनकर ऐसा लगता है कि इन पर्वतों पर कोई अदृश्य शक्ति रहती है। कहने का अर्थ यह है कि यह दोनों अन्य चीनी पर्वत भी कैलाश पर्वत के आसपास में रहने के कारण प्रभावित हैं।

मोक्ष प्राप्ति का रहस्य
भारतीय ऋषि-मुनि ही नहीं बल्कि तिब्बत के धार्मिक गुरुओं का भी ऐसा मानना है कि यदि कैलाश मानसरोवर की तीन अथवा तेरह परिक्रमा की जाये तो उस व्यक्ति को रोग, शोक और भय से मुक्ति मिलती है और उसके पापों का नाश होता है। साथ ही ऐसा भी माना जाता है कि इस कैलाश मानसरोवर की 108 बार परिक्रमा करने से मनुष्य सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है और मोक्ष को प्राप्त करता है। कैलाश मानसरोवर की परिक्रमा लगभग 40 किलोमीटर की दूरी है।

कैलाश धूप का रहस्य
इस क्षेत्र में एक विशेष प्रकार की वनस्पति पाई जाती है जिसे कैलाश धूप कहा जाता है। इस कैलाश धूप को भगवान शिव के प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। लोग ऐसा मानते हैं कि यह कैलाश धूप नाम की वनस्पति एक तरह से संजीवनी है जिसको ग्रहण करने वाले चिरंजीवी बनते हैं ।

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