जल का ये चक्र चलता ही रहेगा
बारिस की बूंदो से होकर
धुप में जल के वास्प में बदल कर,
यूँ ही ये चक्र जीवन के भाती
अविरल अंतहीन चलता ही रहेगा,
तुम रहो या ना रहो जीवन में,
जिस बारिस की बूंदो में तुम भीगते हो
कभी जान पाते हो की
उसका जल किस बादल से आया है,
किन नदियों से निकल कर
वह बादल तक पंहुचा था,
ये जानना आसान नहीं है, ये जल चक्र,
बारिस का हो या नदी का हो
या जैसा भी हो जल,
जल जल के बना है ये जल,
सूरज की तपिस पायी है इसने
बहुत लम्बी यात्रा की है जल ने,
तभी अमर होने का तान मिला है,
जल – जल कर बना है ये जल,
यूँ नहीं देव कहलाता है जल,
जल जीवन को मुस्कुराता है
जल मिर्त्यु को भरमाता है,
अमर है ये जल चक्र…
– श्रीकांत शर्मा
मूर्खों का बहुमत – हिंदी कहानी
किसी जंगल में एक उल्लू रहता था। उसे दिन में कुछ दिखाई नहीं देता था, इसलिए वह दिनभर एक पेड़ पर अपने घोंसले में छिपकर रहता था। सिर्फ रात होने पर ही वह भोजन के लिए बाहर निकलता था। एक बार की बात के गर्मियों का मौसम था। दोपहर का समय था और बहुत तेज धूप थी। तभी कहीं से एक बंदर आया और वह उल्लू के घोसले वाले पेड़ पर आकर बैठ गया। गर्मी और धूप से परेशान बंदन ने कहा – “ऊफ, बहुत गर्मी है। आकाश में सूर्य भी आग के किसी बड़े गोले की तरह चमक रहा है।”
बंदर की बात को उल्लू ने भी सुन लिया। उससे रहा नहीं गया और बीच में ही बोल पड़ा – “यह तुम झूठ कह रहे हो? सूर्य नहीं, बल्कि अगर चंद्रमा के चमकने की बात कहते तो मैं इसे सच मान लेता।”
बंदर बोला – “भला दिन में चंद्रमा कैसे चमक सकता हैं। वह तो रात में चमकता है और यह दिन का समय है, तो दिन में सूर्य ही चमकेगा। यही कारण है कि सूर्य की तेज रोशानी की वजह से बहुत ज्यादा गर्मी हो रही है।”
उस बंदर ने उल्लू को अपनी बात समझाने का बहुत प्रयास किया कि दिन में सूरज ही चमकता है चंद्रमा नहीं, लेकिन उल्लू भी अपनी ही जिद पर अड़ा था। इसके बाद उल्लू ने कहा – “चलो, हम दोनों मेरे एक मित्र के पास चलते हैं, वही इसका निर्णय करेगा।”
बंदर और उल्लू दोनों एक दूसरे पेड़ पर गए। उस दूसरे पेड़ पर उल्लुओं का एक बड़ा झुंड रहता था। उल्लू ने सभी को बुलाया और उनसे कहा कि दिन में आकार में सूर्य चमक रहा है या नहीं यह तुम सब मिलकर बताओ।
उल्लू की बात सुनकर उल्लुओं का पूरा झुंड हंसने लगा। वह बंदर की बात का मजाक उड़ाने लगें। उन्होनें कहा – “नहीं, तुम बेवकूफों जैसी बात कर रहे हो। इस समय आकार में तो चंद्रमा ही चमक रहा है और आकाश में सूर्य के चमकने की झूठी बात बोलकर हमारी बस्ती में झूठ का प्रचार मत करो।”
उल्लुओं के झुंड की बात सुनने के बाद भी बंदर अपनी ही बात पर अड़ा हुआ था। जिस देखर सभी उल्लू गुस्सा हो गए और वे सारे के सारे बंदर को मारने के लिए उसपर झपट पढ़े। दिन का समय था और उल्लुओं को कम दिखाई दे रहा था इसी वजह से बंदर वहां से बचकर भाग निकलने में कामयाब हो गया और उसने अपनी जान बचाई।
कहानी से सीख – पंचतंत्र की यह कहानी हमें सीख देती है कि मूर्ख मनुष्य कभी भी विद्वानों की बात को सच नहीं मानता है। ऐसे मूर्ख लोग अपने बहुमत से सत्य को भी असत्य साबित कर सकते हैं।