होमकविताप्रियतम - भाग २




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रबीन्द्रनाथ टैगोर

कवि

रबीन्द्रनाथ टैगोर (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) - विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांङ्ला' गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।

प्रियतम – भाग २

फिर सुबह जब ऊपर आया
पुनः उसको ऊपर पाया,
सहमी वो थोड़ी फिर
उसके मुस्कुराते, उजाला आया,
आकर खड़ी हुई वो
निरकुंड के पास
शायद उसे लगी थी प्यास,
वो उसमे झाक रही थी
शायद खुद को आंक रही थी…

उसके मन में कुछ था
लेकिन मैं बेबस था,
हिम्मत नहीं उठता मन में
सहस नहीं होता तन में,
अंत घडी तक देखा उसे
जब तक,तब तक, जहा कही तक
मैंने जहा जहा पाया उसे
उसने भी,
लेकिन हम दोनों मिल ना सके
न वो, ना मैं ही पास आया
ना किसी ने दूसरा कदम बढ़ाया…

लेकिन मैं तुम्हे,
कोई अब दोष न दूंगा
मन अपना साध लूंगा,
अच्छा ही लिया, अपने आहों में
मेरे मन का फूल जलाया,
अंदर ही अंदर मेरे
सुगंध का जाल फैलाया,
जिससे मेरा संकल्प बढ़ा
जग की माया और घटी…

तभी तो वैराग्य सा
जीवन बिता रहा हूँ,
देव की ओट में
दुःख दर्द भुला रहा हूँ,
सब कुछ भूल चूका हूँ
पर तुम्हारा चेहरा नहीं
एकांत में, आखो में, मुस्कुराता वही…

– श्रीकांत शर्मा

मूर्ख बकरी – हिंदी कहानी

एक जंगल में दो बकरियां रहती थीं। वो दोनों जंगल के अलग हिस्सों में घास खाती थीं। उस जंगल में एक नदी भी बहती थी, जिसके बीच में एक बहुत ही कम चौड़ा पुल था। इस पुल से एक समय में केवल एक ही जानवर गुजर सकता था। इन दोनों बकरियों के साथ भी एक दिन कुछ ऐसा ही हुआ। एक दिन घास चरते-चरते दोनों बकरियां नदी तक आ पहुंची। ये दोनों नदी पार करके जंगल के दूसरे हिस्से में जाना चाहती थीं। अब एक ही समय पर दोनों बकरियां नदी के पुल पर थीं।

पुल की चौड़ाई कम होने के कारण इस पुल से केवल एक ही बकरी एक बार में गुजर सकती थी, लेकिन दोनों में से कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं था। इस पर एक बकरी ने कहा, ‘सुनो, मुझे पहले जाने दो, तुम मेरे बाद पुल पार कर लेना।’ वहीं, दूसरी बकरी ने जवाब दिया, ‘नहीं, पहले मुझे पुल पार करने दो, उसके बाद तुम पुल पार कर लेना।’ यह बोलते-बोलते दोनों बकरियां पुल के बीच तक जा पहुंची। दोनों एक दूसरे की बात से सहमत नहीं थीं।

अब बकरियों के बीच तू-तू मैं-मैं शुरू हो गई। पहली बकरी ने कहा, ‘पहले पुल पर मैं आई थी, इसलिए पहले मैं पुल को पार करूंगी।’ तब दूसरी बकरी ने भी तुरंत जवाब दिया, ‘नहीं, पहले मैं पुल पर आई थी, इसलिए पहले मैं पुल पार करूंगी।’ यह झगड़ा बढ़ता चलता जा रहा था। इन दोनों बकरियों को बिल्कुल भी याद नहीं रहा कि वह कितने कम चौड़े पुल पर खड़ी हैं। दोनों बकरियां लड़ते-लड़ते अचानक से नदी में गिर गईं। नदी बहुत गहरी थी और उसका बहाव भी तेज था, जिस कारण दोनों बकरियां उस नदी में बहकर मर गईं।

कहानी से सीख – झगड़े से कभी किसी समस्या का हल नहीं निकलता, उल्टा इससे सभी का नुकसान होता है। इसलिए, ऐसी अवस्था में शांत दिमाग से काम लेना चाहिए।

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