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रबीन्द्रनाथ टैगोर

कवि

रबीन्द्रनाथ टैगोर (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) - विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांङ्ला' गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।

कौन सीखा है

कौन सीखा है
सिर्फ बातों से,
सबको,
एक हादसा जरूरी है।


यात्रा का सफर

सुना है, हर किसी का जीवन एक यात्रा होता है। किसी की यात्रा संघर्षपूर्ण होती है, तो किसी की यात्रा सुखद। इसी बेताबी से जीने वाले एक युवक का नाम अर्जुन था। उसका सपना था कि वह अपने जीवन की यात्रा में सफलता की ऊँचाइयों तक पहुंचेगा।

अर्जुन ने कभी हार नहीं मानी और हमेशा अगले पथ पर बढ़ने के लिए तैयार रहा। उसने अपने लक्ष्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखी और निरंतर मेहनत करता रहा।

एक दिन, अर्जुन को आध्यात्मिक चेतना की खोज का आभास हुआ। उसने समझा कि सफलता का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा उसके आत्मा के साथ जुड़ा हुआ है। उसने योग और ध्यान की प्रक्रिया में प्रवृत्त होने का निर्णय लिया और एक आध्यात्मिक गुरु से मिलकर इस मार्ग में अग्रसर हुआ।

आरंभ में, अर्जुन को साधना में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उसने अपने शरीर, मन, और आत्मा की संगति के माध्यम से एक नए दर्शन को खोला और अपने अंतरंग जीवन को समझने का मार्ग प्राप्त किया।

साधना के दौरान, उसने अपने जीवन की मुख्यमंत्रीओं को खोजने में सफलता प्राप्त की। उसने आत्मा के अंधकार से बाहर निकलकर जीवन की सच्चाई को देखा और समझा।

अर्जुन ने साधना का सफर पूरा करते हुए अपने जीवन को सत्य, शांति, और प्रेम की दिशा में पूरी तरह से पुनर्निर्माण किया। उसने अपनी सच्ची सफलता का मतलब समझा और उसने अब अपने जीवन को दूसरों की सेवा में समर्पित करने का निर्णय लिया।

अर्जुन की यात्रा एक नए आदर्शों और मूल्यों के साथ समाप्त हुई। उसने अपने जीवन को एक अर्थपूर्ण और समृद्धि भरे समुदाय की दिशा में मोड़ दिया। उसका संबोधन सुनते ही लोगों में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ और वे भी अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में बदलने का निर्णय लिया।

यह कहानी हमें यह बताती है कि सफलता का सफर अक्सर हमारे आत्मा की खोज में होता है। यह एक साधक के अनुभवों से सजीव होती है जो अपने जीवन को एक नए दर्शन में बदलने के लिए समर्थ होता है। हमें यह याद रखना चाहिए कि सफलता सिर्फ बाह्यिक लाभों का ही माप नहीं होती, बल्कि यह हमारे आत्मा के विकास और सामाजिक सेवा में योगदान के माध्यम से आती है।

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