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रबीन्द्रनाथ टैगोर

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रबीन्द्रनाथ टैगोर (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) - विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांङ्ला' गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।

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भूखा राजा और गरीब किसान – हिंदी कहानी

सालों पहले एक नगर का राजा अपने राज्य में रात को अपना रूप बदलकर घूमता था। वो रूप बदलने के बाद लोगों से मिलकर अपने यानी राजा के बारे में जानने की कोशिश करता और उनकी समस्याओं को समझता था। एक रात जब वह नगर घूमकर आया, तो अचानक जोर से बारिश होने लगी। उसने देर किए बिना एक गरीब के घर का दरवाजा खटखटाया।

राजा के दरवाजा खटखटाने के बाद घर से एक व्यक्ति निकला। वह एक गरीब किसान था, जो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता था। बारीश तेज थी, तो किसान ने राजा को अंदर आने के लिए कहा। राजा ने घर में जाने के बाद पूछा, ‘क्या आप मुझे कुछ खिला सकते हैंं। मुझे बहुत तेज भूख लगी है।’

वो गरीब किसान और उसका परिवार 3 दिनों से भूखा था और उसके घर में एक भी दाना अन्न का नहीं था। किसान के मन में हुआ कि भले ही हम भूखे हैं, लेकिन अपने अतिथि को यूं भूखा नहीं रख सकते। अब किसान ये सोच-सोचकर बेचैन हो गया कि अपने अतिथि का पेट कैसे भरा जाए, तभी उसने घर के सामने वाली दुकान से चावल चुराने की तरकीब सोची। उसने सिर्फ अतिथि के लिए ही दो मुट्ठी चावल लिया और उसे पकाकर राजा को खिला दिया। तब तक बारिश रुक गई थी और राजा अपने घर चला गया।

दूसरे दिन दुकान का मालिक अनाज की चोरी की शिकायत लेकर राजा के पास पहुंचा। राजा ने दुकान के मालिक और उस गरीब किसान को अपनी सभा में प्रस्तुत होने का आदेश दिया। सबसे पहले सभा में पहुंचे किसान ने राजा के सामने जाकर अपनी चोरी का इल्जाम कबूल कर लिया और बीती हुई रात की पूरी बात राजा को बता दी। किसान राजा से कहता है कि मैंने चोरी की, लेकिन मेरे परिवार ने उस अनाज का एक निवाला भी नहीं खाया।

गरीब किसान की बातें सुनकर राजा बहुत दुखी हुआ और उसने किसान को बताया कि अतिथि के रूप में मैं स्वयं तुम्हारे घर आया था। इसके बाद राजा ने सभा में पहुंचे दुकानदार से पूछा कि क्या आपने अपने पड़ोसी को चोरी करते हुए देखा था। दुकानदार ने जवाब दिया कि हां मैंने इसे रात में चोरी करते हुए देखा था।

दुकानदार की बात सुनने के बाद राजा कहता है कि इस चोरी के लिए मैं पहले जिम्मेदार हूं और फिर दूसरा तुम हो, क्योंकि तुमने अपने पड़ोसी को अनाज की चोरी करते हुए देखा। मगर कभी उसके भूखे परिवार को नहीं देखा। तुम अपने पड़ोसी होने का धर्म बिल्कुल निभा नहीं पाए। इतना कहने के बाद राजा ने दुकानदार को सभा से जाने के लिए कह दिया और किसान की अथिति निष्ठा भाव को देखकर उसे एक हजार सोने के सिक्के इनाम के रूप में दे दिया।

कहानी से सीख – अगर कोई आस पास रहने वाले मुसीबत में है, तो हमें उनकी मदद करनी चाहिए।

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