किसी के उतने ही रहो,
जितना वो तुम्हारा है।
बंदर की मित्रता – एक छोटी सी कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गांव में एक बंदर रहता था। उसका नाम मोनू था। मोनू बहुत ही खुशमिजाज और खेलने में बहुत रुचिकर था। उसके पास गांव के सभी बच्चे उसके साथ खेलते थे।
एक दिन, मोनू गांव के पास एक जंगल में चला गया। वहां पर वह एक दूसरे बंदर से मिला। उस बंदर का नाम बिल्लू था। मोनू और बिल्लू ने एक-दूसरे से मित्रता की।
दोनों बंदर रोज़ जंगल में मिलकर खेलने लगे। वे झूले पर कूदते, पेड़ों पर चढ़ते और बहुत मजा करते। बिल्लू बहुत ही शतरंज में माहिर था और मोनू ने भी शतरंज खेलना सीख लिया।
एक दिन, बिल्लू ने मोनू से कहा, “मोनू, तुम्हें कभी अपने सपनों को पूरा करने का मौका मिलता है तो क्या तुम उसे छोड़ देते हो?”
मोनू थोड़ी देर सोचने के बाद बोला, “नहीं बिल्लू, मैं कभी भी अपने सपनों को छोड़कर नहीं दूंगा।”
बिल्लू ने आगे कहा, “तो ठीक है, मैं सोच रहा हूँ कि हम दोनों मिलकर जंगल के उस बड़े बड़े पेड़ों में चढ़कर उनके फल खाकर खुद को साबित करें।”
मोनू ने हंसते हुए कहा, “वाह बिल्लू, यह तो बहुत मजेदार और मनोरंजक आविष्कार है!”
दोनों बंदर मिलकर उस योजना को कार्यान्वित करने लगे। वे पेड़ों में चढ़कर फल खाते, खुद को साबित करते और बहुत मजा करते। वे जब मिलकर खेलते थे, तो उनकी मित्रता में और भी मजा आता था।
इसी तरह, मोनू और बिल्लू ने दिखाया कि मिलकर मिलकर कुछ भी संभव है। उनकी मित्रता ने उन्हें नए सपनों की ओर बढ़ने का साहस दिलाया और उन्हें यकीन दिलाया कि दोस्ती की शक्ति से हर मुश्किल आसानी से पार की जा सकती है।
इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि सच्ची मित्रता में एक-दूसरे के सपनों का समर्थन करना और साथ मिलकर काम करना किसी भी मुश्किल को आसान बना सकता है।