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रबीन्द्रनाथ टैगोर

कवि

रबीन्द्रनाथ टैगोर (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) - विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांङ्ला' गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।

पेट पालना

दुनिया में अपना पेट पालना ही
लक्ष्य नहीं होना चाहिए,
क्यूँकि यह काम तो
कुत्ता भी कर लेता है,
आदमी को कोई
बड़ा काम करना चाहिए।


पेट पालना

यह कहानी है एक गांव के एक छोटे से लड़के की, जिसका नाम रमेश था। रमेश एक सरल और सहीमाने छात्र था, लेकिन उसका पेट बहुत बड़ा था, और वह बहुत ज्यादा खाता था।

गांव के लोग उसे ‘खानेवाला बच्चा’ कहते थे, क्योंकि वह खाने में इतना अच्छा था कि वह हमेशा पेट भर कर खाता रहता था। वह बड़ा ही मोटा और हेल्दी बच्चा बन गया था।

एक दिन, गांव में एक मेला आया, जिसमें खाने के साथ-साथ बड़े रंग-बिरंगे खिलौने भी बिक रहे थे। रमेश ने एक बड़े सुंदर घोड़े की खिलौने को देखकर खरीदने का फैसला किया। वह अपने माता-पिता से पैसे मांगने लगा, लेकिन उन्होंने उसे कहा, “बेटा, हम तुम्हारे लिए खिलौने की बजाय अच्छे आहार का पेट पालना प्राथमिक मानते हैं।”

रमेश ने पहले कुछ इंकार किया, लेकिन फिर उसने समझ लिया कि उसके माता-पिता सही कह रहे थे। वह अपने घोड़े की खिलौने की बजाय अच्छे आहार का पेट पालने के लिए पैसे मांगने का निर्णय लिया।

वह गांव के खानेवाला बच्चा नहीं रहा, बल्कि उसने अपने स्वास्थ्य की देखभाल की और सही तरीके से आहार लिया। वह एक स्वस्थ और मेहनती छात्र बन गया, और उसने अच्छे शिक्षा प्राप्त की।

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि सही आहार का पेट पालना हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण है। हमें स्वस्थ रहने के लिए संतुलित आहार का पालन करना चाहिए और खिलौनों की बजाय सही दिशा में प्राथमिकता देनी चाहिए।

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