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रबीन्द्रनाथ टैगोर

कवि

रबीन्द्रनाथ टैगोर (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) - विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांङ्ला' गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।

ताउम्र साथ

अधूरे को पूरा करते रहना
देर से सही, हर बार मिलते रहना,
तुम उम्र नहीं जो गुजर जाओगे
जिंदगी हो, ताउम्र साथ रहना…

बिना अकल के नक़ल – हिंदी कहानी

एक समय की बात है, किसी देश में सूखे की वजह से अकाल पड़ गया। सभी लोगों की फसलें सूखकर बर्बाद हो गई। उस देश के लोग खाने-पीने के लिए तरसने लगे। ऐसी मुश्किल घड़ी में बेचारे कौवों और अन्य पशु-पक्षियों को भी रोटी या खाने के टुकड़े नहीं मिल रहे थे। जब कौवों को काफी दिनों से कुछ खाने के लिए नहीं मिला, तो वे भोजन की खोज में जंगल ढूंढने लगें।

जंगल पहुंचने पर एक कौवा-कौवी की जोड़ी एक पेड़ पर रूके और वहीं पर अपना बसेरा बना लिया। उसी पेड़ के नीचे एक तालाब था। उस तालाब में पानी में रहने वाला एक कौवा रहता था। वह दिन भर पानी में रहता और ढेर सारी मछलियां पकड़कर अपना पेट भरता रहता था। जब पेट भर जाता था, तब वह पानी में खेलता भी था।

वहीं, पेड़ की डाल पर बैठा कौवा, जब पानी वाले कौवे को देखता, तो उसका भी मन उसी की तरह बनने का करता। उसने सोचा कि अगर वह पानी वाले कौवे से दोस्ती कर ले, तो उसे भी दिन भर खाने के लिए मछलियां मिलेंगी और उसके भी दिन अच्छे से गुजरने लगेंगे।

वह तलाब के किनारे गया और पानी वाले कौवे से मीठे स्वर में बात करने लगा। उसने कहा – “मित्र सुनो, तुम बहुत ही स्वस्थ हो। पलक झपकते ही मछलियां पकड़ लेते हो। क्या मुझे भी अपना यह गुण सिखा दोगे?”

यह सुनकर पानी वाले कौवे न कहा – “मित्र, तुम यह सीखकर क्या ही करोगे, जब भी तुम्हें भूख लगे, तो मुझे बता दिया करो। मैं तुम्हें पानी में से मछलियां पकड़कर दे दूंगा और तुम खा लिया करना।”

उस दिन के बाद से जब भी कौवे को भूख लगती, वह पानी वाले कौवे के पास जाता और उससे ढेर सारी मछलियां लेकर खाता।

एक दिन उस कौवे ने सोचा कि पानी में जाकर बस मछलियां ही तो पकड़नी हैं। यह काम वह खुद भी कर सकता है। आखिर कब तक वह उस पानी वाले कौवे का एहसान लेता रहेगा।

उसने मन में ठाना की वह तालाब में जाएगा और खुद अपने लिए मछलियां पकड़ेगा।

जब वह तालाब के पानी में जाने लगा, तो पानी वाले कौवे ने उससे फिर कहा – “मित्र, तुम ऐसा मत करो। तुम्हें पानी में मछली पकड़ना नहीं आता है, इस वजह से पानी में जाना तुम्हारे लिए जोखिम भरा हो सकता है।”

पानी वाले कौवे की बात सुनकर, पेड़ पर रहने वाले कौवे ने घमंड में कहा – “तुम ऐसा अपने अभिमान की वजह से बोल रहे हो। मैं भी तुम्हारे जैसा पानी में जाकर मछलियां पकड़ सकता हूं और आज मैं ऐसा करके साबित भी कर दूंगा।”

इतना कहकर उस कौवे ने तालाब के पानी में छपाक से छलांग लगा दी। अब तालाब के पानी में काई जमी हुई थी, जिसमें वह फंस गया। उस कौवे को काई हटाने या उससे बाहर निकलने का कोई अनुभव नहीं था। उसने काई में अपनी चोंच मारकर उसमें छेंद करना चाहा। इसके लिए जैसे ही उसने अपनी चोंच काई में धंसाई उसकी चोंच भी काई में फंस गई।

काफी प्रयास करने के बाद भी वह उस काई से बाहर न निकल सका और कुछ देर बाद पानी में दम घुटने की वजह से उसकी मृत्यु हो गई।

बाद में कौवे को ढूंढते हुए कौवी भी तालाब के पास आई। वहां आकार उसने पानी वाले कौवे से अपने कौवे के बारे में पूछा। पानी वाले कौवे ने सारी बात बताते हुए कहा – “मेरी नकल करने के चक्कर में, उस कौवे ने अपने ही हाथों से अपने प्राण धो लिए।”

कहानी से सीख – किसी के जैसा बनने का दिखावा करने के लिए भी मेहनत करने की जरूरत होती है। साथ ही अहंकार इंसान के लिए बहुत बुरा होता है।

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