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रबीन्द्रनाथ टैगोर

कवि

रबीन्द्रनाथ टैगोर (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) - विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांङ्ला' गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।

प्रेम सब्र है

प्रेम सब्र है,
सौदा नहीं
इसलिए,
हर किसी से
होता नहीं…

राजा का प्रेम – हिंदी कहानी

सालों पहले राजा नाथ का शासन शिवा नगर पर हुआ करता था। राजा की तीन रानियां थीं। राजा अपनी तीनों पत्नियों में से सबसे ज्यादा अपनी पहली पत्नी को प्यार करता था, क्योंकि वो खूब सुंदर थी। उसकी सुंदरता के कारण राजा दूसरी और तीसरी पत्नी पर ध्यान नहीं दे पाता था। वह अपनी दूसरी पत्नी को दोस्त मानता था और तीसरी पत्नी पर बिल्कुल गौर नहीं करता था।

इधर, राजा की तीसरी पत्नी उससे बेहद प्रेम करती थी, लेकिन राजा को तीसरी रानी का प्यार कभी दिखाई ही नहीं दिया। वो हरदम अपनी पहली पत्नी के साथ ही व्यस्त रहता था। ऐसा होते-होते कई साल बीत गए। रोज राजा की तीसरी पत्नी इसी उम्मीद में रहती थी कि राजा आज उसके पास आएंगे। आज वो कुछ प्रेम भरी बातें करेंगे, लेकिन ऐसा कभी कुछ नहीं हुआ।

इसी तरह कुछ वर्ष बीत गए। एक दिन राजा नाथ अचानक से गंभीर बीमार हो गए। उनकी तबियत देखते-ही-देखते खराब होती गई और उनके जीवित रहने की उम्मीद कम हो गई। तब राजा ने अपने पहली पत्नी को बुलावा भेजा। राजा की पहली पत्नी राजा के पास आए, तो राजा ने उससे पूछा कि मेरे जीवित रहने की संभावना बहुत कम हो गई है और मैं भगवान के पास अकेले जाना नहीं चाहता हूं, क्या तुम मेरे साथ चलोगी?

राजा की बातें सुनकर रानी ने उनके साथ जाने से माना कर दिया और कहने लगी कि अभी मेरा जीवन बचा हुआ है और मैं अभी और जीना चाहती हूं। इसी वजह से मैं आपके साथ नहीं जा सकती। ऐसा कहकर पहली रानी राजा के कमरे से बाहर चली गई। तब राजा दूसरी रानी को बुलाने के लिए कहता है।

दूसरी रानी को जब पता चलता है कि राजा अपने अंतिम क्षण में है और वो अपने साथ अपनी पत्नी को लेकर जाना चाहते हैं, तो वो राजा को पास जाने से ही मना कर देती है। अपनी दोनों प्रिय रानी से निराश होकर राजा ने सोचा कि मैंने कभी अपनी तीसरी पत्नी को समय नहीं दिया और न ही उसपर प्यार जताया। अब मैं उसे कैसे बुला सकता हूं। राजा ऐसा सोच ही रहे थे, तभी तीसरी रानी बिना बुलाए राजा के पास पहुंच गई।

तीसरी रानी को राजा की इच्छा पता होती है, इसलिए वह सीधे राजा से कहती है, ‘स्वामी मैं आपके साथ चलने के लिए तैयार हूं। रानी की बात सुनकर राजा को बहुत खुशी हुई। साथ ही उन्हें यह निराशा हुई कि उसने सारी जिंदगी उस रानी से ठीक तरह से प्यार नहीं जताया, लेकिन यही मुझसे सबसे ज्यादा प्रेम करती है।

उसी वक्त राजगुरु एक जाने-माने वैद्य को लेकर आते हैं, जो राजा की तबीयत को ठीक कर देता है। राजा ठीक होते ही अपनी तीसरी रानी से प्रेम करने लगा। हमेशा अपने करीब राजा ने अपनी तीसरी रानी को ही रखा और दोनों खुशी-खुशी राजमहल में जीवन जीने लगे।

कहानी से सीख – किसी को सुंदरता से प्रेम नहीं करना चाहिए, बल्कि उसके दिल और आचरण से प्यार करना चाहिए।

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